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आज से पांच साल पहले जब वह अफगानिस्तान में था तब वहां तालिबान आतंकवादियों ने उसका अपहरण कर लिया था. तालिबान से रिहा होने के बाद वह सकुशल अपने घर तो लौट आया लेकिन उसने जो खोया उसका तो आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते.
सार्जेंट बोये बर्गडेहल नाम के इस व्यक्ति ने अपनी मातृ भाषा ही खो दी है जिसे वह पिछले 23 साल से बोलता आया है. जिस भाषा को आप नहीं जानते उससे अनजान होना या फिर किसी विदेशी भाषा को भूलने जैसी बात समझ में आती है लेकिन कोई व्यक्ति अपनी मातृभाषा को कैसे भूल सकता है, ये बात अभी तक विशेषज्ञों की समझ से बाहर है.
भाषाविद् मोनिका श्मिद का कहना है कि ऐसे केस बहुत सुने और देखे हैं जब व्यक्ति कई सालों तक अपनी मातृभाषा से दूर रहता है, ना वह उसे कभी सुनता है और ना ही वर्षों तक उसे वो भाषा कहीं सुनाई देती है लेकिन फिर भी वह उस भाषा से अंजान नहीं होता पर ऐसा पहली बार हुआ है जब कोई व्यक्ति 5 सालों के भीतर ही अपनी मातृभाषा को पूरी तरह भुला चुका है.
मोनिका का कहना है कि कई बार उम्र ज्यादा हो जाने की वजह से व्यक्ति अपनी भाषा से मुश्किल शब्दों और व्याकरण को भुला देता है लेकिन भाषा से जुड़ी हर छोटी बात भूल जाने जैसा वाकया अपने आप में अद्भुत है.
जब आप किसी दूसरी भाषा को ज्यादा बेहतर तरीके से जानने और समझने लग जाते हैं तब आप अपनी मातृभाषा को भूल जाते हैं. फिलाडेल्फिया यूनिवर्सिटी से संबद्ध डॉ. अनिता पेवलेंको का कहना है कि ज्ञान संबंधी स्त्रोत सीमित होते हैं इसलिए जब आप एक भाषा को छोड़कर किसी अन्य भाषा को प्राथमिकता देने लगते हैं तो आप पहली भाषा की मौलिक चीजें भूल जाते हैं. अमेरिकी विश्वविद्यालय में रशियन भाषा की अध्यापिका होने के बावजूद डॉ. अनिता वापिस अपने रूसी समुदाय में इसलिए शामिल हुईं क्योंकि उन्हें यह लगने लगा था कि वह लोगों से वार्तालाप करना भूल गई हैं.
विशेषज्ञों का कहना है कि सार्जेंट बोये का यह केस यह स्पष्ट प्रमाणित करता है कि भले ही दिमाग पर लगी किसी गहरी चोट की वजह से आप अपनी याद्दाश्त गवां बैठते हैं लेकिन भावनात्मक रूप से अगर आप किसी गहरे सदमे से गुजरते हैं तो यह उससे भी कहीं ज्यादा नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है. बहुत हद तक संभव है कि सार्जेंट ने भी तालिबान की गिरफ्त में बिताए गए उन 5 वर्षों में कुछ ऐसा महसूस किया हो जिससे वह भावनात्मक रूप से पूरी तरह टूट गया हो, जिसकी वजह से वह अपनी भाषा ही भूल गया.
अपनी जान बचाने के लिए जब यहूदियों को अपना देश छोड़कर जाना पड़ा था तो यह उनके लिए किसी गहरे सदमे से कम नहीं था. जितना ज्यादा वह भावनात्मक रूप से घायल थे उतनी ही जल्दी वह अपनी भाषा को भूल गए थे.
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